ईशवर की इस नियमावली को समझते हुए श्री गुरू नानक देव जी और गुरू गोबिंद सिंघ जी ने पंथ की साजना की और वह भी है दो रंगी। यही कारण है कि सिख कौम सारी दुनियां में दो नामों से जानी जाती है। एक सिख और एक सिंघ। सिख आत्मा है और सिंघ/सिंह शरीर है। सिख का जन्म है गुरू की विचार से, गुरू के शबद से। ईस पुसतक में हरजीत सिंह द्वारा संत सिंह जी मसकीन की विचारों को प्रस्तुत किया गया है।