मसकीन जी ने इस पुस्तक में गुरुबाणी की पंक्तियों के शीर्षकों के आधार पर बहुत सुन्दर विद्वता-भरे और शंका दूर करने वाले लेख लिखे हैं, गुरुबाणी सही रास्ता दिखाती है, इसे स्पष्ट करने का पूरा यत्न किया गया हैं । जैसा कि (कर्इ कोटि होए पूजारी) पुजारी (ग्रंथी) किस तरह के होने चाहिए और उनका सत्कार किस तरह होना चाहिए और आज के समय में इस श्रेणी की क्या हालत है या (बाबा होरु खाणा खुसी खुआरु) माँस के खाने और र खाने के सम्बन्ध में खण्डन और मण्डन दोनों पक्ष लेकर गुरुबाणी और भार्इ गुरदास जी की वारों का प्रमाण देकर बहुत सुन्दर ढंग के साथ अपने विचार प्रकट किए हैं ।