आदि श्री गुरुग्रन्थ साहिब मध्यकालीन सन्तों की अमूल्य वाणी का एक अपूर्व संकलन है, जिसमें सम्पादक गुरु अर्जुनदेव जी ने विग्रह और विघटन के युग में व्यापक भारतीय दृषिट से प्रादेशिक, भाषायी, वर्गीय अथवा जातीय वृत्तों-घेरों से परे एक समान मंच की स्थापना की थी । युग-बोध और भावी आदर्शों के साथ-साथ इसमें भावात्मक एकता का सूत्र थाम कर भारतीय महानात्माओं ने सांसारिक जीवों के लिए जीने का सही मूल्य आँकने का सफल प्रयास किया था ।