गीता और गुरुबाणी दोनों पुरुष से पुरुषोत्तम नर से नारायण बनने की यात्रा की वर्णन करते हैं। दोनों का आर्दश मनुष्य समतायोगी, गुरुमुख और ब्रह्मज्ञानी हैं। परमात्मा एक है परन्तु विद्वान व्यक्ति उसको विभिन्न नामों से पुकारते हैं। ईस पुस्तक की लेखिका का उद्देश्य जहां एक और इन ग्रन्थों में पाए जाने वाले शाशवत मूल्यों का उदघाटन करना हैं, जो हमारी सभ्यता और संस्कृति का आधार हैं वहां इन ग्रन्थों में छिपे ज्ञान रत्नों के सौन्दर्य को दर्शाना है तांकि उनका अनुसरण कर उन्हें अपनें जीवन में ढ़ालकर हम जीवन को एक नई दिशा प्रदान कर सकें। अपने जीवन का नव निर्माण कर सकें।